विष्णु नागर का व्यंग्यः राहुल गांधी ने डाकू को चोर बताकर जुल्म किया, डाकू भी खुश नहीं हैं और चोर भी!

सत्ता के लिए जो भी घपले-घोटाले इन्हें और करने होंगे, ये बेशर्मी से करेंगे। जैसे-जैसे इनके रहस्य खुलते जाएंगे, वैसे-वैसे ये और बेशर्म होते जाएंगे। ये शर्माने वाले, झिझकने वाले जीव नहीं हैं। इन्होंने संपूर्ण सत्ता के लिए लगभग 90 साल इंतजार किया है। इनके लिए जनता, चुनाव और लोकतंत्र एक बहाना है। सत्ता ही इनके लिए सत्यम, शिवम और सुंदरम है।
पोल खुलती है इनके किसी कृत्य की, तो उसे ये उस काम की वैधता का लाइसेंस मानने लगते हैं। ये लोकतंत्र, लोकतंत्र खेलना जानते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि ये लोकतांत्रिक हैं। ये देशभक्ति, देशभक्ति खेलना जानते हैं, इसका अर्थ यह नहीं कि ये देशभक्त हैं। देशभक्ति और लोकतंत्र वह खाल है, जिसे ओढ़कर ये सनातनी-सनातनी खेल रहे हैं। इनका खेल वाशिंगटन से पटना तक बिगड़ता जा रहा है, इससे ये परेशान हैं, हताश हैं। चिड़चिड़े हो रहे हैं। नेहरू-नेहरू जप रहे हैं।