फिलिस्तीन को ‘मान्यता’ देने का फरेब

फिलिस्तीन को ‘मान्यता’ देने का फरेब


2024 में इजराइल के रक्षा मंत्रालय ने 14.7 अरब डॉलर के हथियार निर्यात की सूचना दी, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13 प्रतिशत ज्यादा है। इनमें से आधे से ज्यादा रक्षा सौदे यूरोपीय देशों के साथ हुए। यह उस रिश्ते का भौतिक आधार है जिसे फिलिस्तीन की ‘मान्यता’ ने अछूता छोड़ दिया है।

इजराइल द्वारा दशकों से बस्तियों के विस्तार के बावजूद, यूरोप ने तरजीही संबंध कायम ही नहीं रखे, उन्हें और गहरा किया है। 1995 से एक मुक्त व्यापार समझौता लागू है। 2010 में कृषि व्यापार का विस्तार हुआ। 2013 में दवाइयों के लिए एक पारस्परिक मान्यता व्यवस्था लागू हुई। 2018 में एक खुले आसमान वाला विमानन समझौता हुआ। बहुप्रचारित भेदभाव की नीति, जो बस्तियों के उत्पादों को तरजीही व्यवस्थाओं से बाहर रखती है, महज एक इशारा है, न कि लाभ उठाने का कोई साधन। इसने न तो उपनिवेशीकरण को रोका और न ही धीमा किया है।

यूरोप ने पड़ोस नीति और अनुसंधान ढांचों के जरिये वित्तीय और संस्थागत लाभ भी मुहैया कराए हैं। इजराइल यूरोपीय संघ की दक्षिणी पड़ोस रणनीति (दक्षिणी भूमध्यसागरीय क्षेत्र के देशों के साथ जुड़ाव का एक रणनीतिक ढांचा) में एक विशेषाधिकार प्राप्त भागीदार बना हुआ है, भले ही इस नरसंहारकारी युद्ध को छेड़ने वाला भी वही है।

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