भारत के जंगलों की सेहत पर खतरे का नया अलार्म बजा है। आईआईटी खड़गपुर के एक अध्ययन के अनुसार बीते दस वर्षों में देश के जंगलों की प्रकाश संश्लेषण दक्षता यानी वह प्रक्रिया जिसमें पेड़-पौधे सूर्य की रोशनी, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड को भोजन और ऊर्जा में बदलते हैं लगभग 5 प्रतिशत तक घट गई है। यह गिरावट खासतौर पर पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट और गंगा के तटीय मैदानों के पुराने वनों में अधिक देखी गई है। जलवायु परिवर्तन के बीच यह जंगलों के लिए दोहरा आघात है। जंगलों की सेहत के लिए इसे एक खतरनाक संकेत माना जा रहा है।
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जब उनकी प्रकाश संश्लेषण क्षमता घटती है तो इसका सीधा असर वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की क्षमता पर पड़ता है। इसका नतीजा यह है कि आज भारत के केवल 16 प्रतिशत जंगल ही हाई इंटीग्रिटी यानी उच्च संपूर्णता बनाए हुए हैं, जबकि बाकी ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं। आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीप्पुरथ और शोधकर्ता राहुल कश्यप द्वारा किया गया यह अध्ययन बताता है कि जंगल अब गर्मी, सूखा, नमी से ज्यादा असुरक्षित हैं।
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हरियाली बढ़ी, जंगलों की सेहत गिरी
अध्ययन स्पष्ट करता है कि भारत में भले ही बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और हरियाली बढ़ी हो लेकिन जंगलों का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल नए पेड़ लगाना काफी नहीं है, बल्कि पुराने वनों की सुरक्षा और उनके प्राकृतिक ढांचे को मजबूत करना ही भविष्य की असली चुनौती है।