अध्ययन: गर्भावस्था बदल देती है दिमाग की संरचना, कुछ का प्रभाव जीवनभर; बढ़ती है मातृत्व की संवेदनशीलता

अध्ययन: गर्भावस्था बदल देती है दिमाग की संरचना, कुछ का प्रभाव जीवनभर; बढ़ती है मातृत्व की संवेदनशीलता


वैज्ञानिकों ने अब पहली बार प्रमाणिक रूप से यह दर्ज किया है कि गर्भावस्था सिर्फ शरीर को ही नहीं बल्कि महिला के मस्तिष्क (ब्रेन) को भी गहराई से बदल देती है। नेशनल ज्योग्राफिक की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भधारण से लेकर प्रसव के बाद तक मस्तिष्क में ऐसे बदलाव आते हैं जो जीवनभर कायम रह सकते हैं। शोधकर्ताओं ने प्रिसिशन ब्रेन इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल करके गर्भवती महिलाओं के दिमाग की संरचना  को स्कैन किया। यह पहली बार हुआ कि गर्भावस्था के हर चरण में मस्तिष्क पर पड़े प्रभाव को व्यवस्थित रूप से दर्ज किया गया।

नतीजों में पाया गया कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के दिमाग में कुछ हिस्से सिकुड़ते और कुछ हिस्से मजबूत होते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये बदलाव महज अस्थायी नहीं हैं, बल्कि कुछ संरचनात्मक परिवर्तन स्थायी  हो जाते हैं। इनका सीधा संबंध मातृत्व की प्रवृत्ति, भावनात्मक जुड़ाव और बच्चे की देखभाल की क्षमता से जोड़ा जा रहा है।

बच्चों की जरूरतों को समझने के लिए बदलाव

यूनिवर्सिटी ऑफ बर्सिलोना की न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. एलिसा ई. ह्यूज का कहना है, गर्भावस्था मस्तिष्क को इस तरह रीवायर करती है कि महिला को बच्चे की जरूरतों को समझने और ख्याल रखने की क्षमता बेहतर ढंग से मिल सके। यह प्राकृतिक अनुकूलन (एडाप्टिव प्रोसेस) है, जिसे हम वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कर पा रहे हैं। भारतीय न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. आरके मिश्रा का कहना है कि भारतीय संदर्भ में इस शोध का महत्व और भी बढ़ जाता है।  

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यह सामान्य प्रक्रिया नहीं न्यूरो साइंटिफिक चमत्कार

शोध में यह भी सामने आया कि मातृत्व के दौरान यह दिमागी परिवर्तन महिलाओं को सहानुभूतिपूर्ण (एंपैथेटिक) और संवेदनशील बनाने में मदद करते हैं। हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अत्यधिक तनाव, नींद की कमी और सामाजिक सहयोग का अभाव इन सकारात्मक परिवर्तनों को कमजोर कर सकता है। भविष्य में यह अध्ययन प्रसवोत्तर अवसाद, चिंता और मातृ मानसिक स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में अहम साबित हो सकता है।

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हार्मोनल प्रभाव: गर्भावस्था में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, ऑक्सीटोसिन और प्रोलैक्टिन जैसे हार्मोन तेजी से बढ़ते हैं। ऑक्सीटोसिन को अक्सर लव हार्मोन कहा जाता है। यह मां और बच्चे के बीच बंधन को गहराता है। प्रोलैक्टिन दूध उत्पादन से जुड़ा है, लेकिन साथ ही यह मातृत्व व्यवहार (नर्चरिंग बिहेवियर) को भी प्रोत्साहित करता है।

न्यूरोप्लास्टिसिटी: गर्भावस्था के दौरान मस्तिष्क अपनी रीवायरिंग क्षमता (न्यूरोप्लास्टिसिटी) को सक्रिय करता है। नए न्यूरल कनेक्शन बनते हैं जो मां को शिशु की आवाज, गंध और भावनात्मक संकेतों को पहचानने में सक्षम बनाते हैं। यह प्रक्रिया स्थायी होती है, इसलिए मातृत्व से जुड़े कुछ दिमागी बदलाव जीवनभर रहते हैं।

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